15 जून 2016

इतिहास मे दर्ज़ झूट का पर्दाफास। राजा पोरस पंत को नहीं हरा पाया था सम्राट सिकंदर।

आज तक आपको यही झूठ परोशा गया क़ि जो जीता वही सिकंदर लेकिन हकीकत इससे उलट है। सच्चाई एक न एक दिन सामने आ ही जाती है।  असलियत में जो जीता वो पोरस होना चाहिए था। बहुत कम लोग ये बात जानते है की कैसे पोरस के साथ युद्ध में सिकंदर अपनी जान बचा के भागा था। और सबसे बड़ी बात यह कि पोरस की हार सिकंदर से नहीं हुई थी। पोरस की हार को गलत तरीके से दिखाने का काम कुछ इतिहासकारों ने किया है।
इतिहास के ज्ञाता एवं प्रख्यात लेखक प्लूटार्क ने भी लिखा है कि सिकंदर सम्राट और उसकी सेना पोरस उर्फ़ पुरू पंत की 20,000 की सेना के सामने नहीं टिक पाई थी। असल में तो पोरस की सेना ने सिकंदर की सेना को लड़ाई मे बुरी तरह से मार गिराया था। इतिहासकारों का भी यही मानना है कि सिकंदर अगर जीत गया होता तो मगध की गद्दी पर बैठा होता। मगर सिकंदर का कारवां तो पारस के साम्राज्य तक ही सिमट के रह गया और उससे आगे नहीं बढ़ पाया।

जिसका साफ़ मतलब निकलता है की सिकंदर वहीं हार चुका था और मगध नहीं पहुँच पाया था। इसका उल्लेख जम्मू कश्मीर की व्यथित नामक किताब में भी किया गया है। किताब मे उल्लेखित है कि महाराजा पुरू  सिंध और पंजाब राज्य  सहित भारत के एक बहुत बड़े भू–भाग के स्वामी थे। और उत्तरी भारत में घुसने के लिए सिंध को पार करना पड़ता था। वहीँ  सिंकदर मेसेडोनिया का ग्रीक शासक था। सिकंदर ने अपने पिता की मृत्यु के बाद राज्य सत्ता हासिल करने के लिए अपने ही भाइयों को कत्ल कर दिया था । अंग्रेजों ने भारतीय इतिहास को बदलकर  सिकंदर को बहुत दयालु राजा की तरह दर्षाया । दरअसल भारत की गौरवशाली सभ्यता और संस्कृति को छीन्न भिन्न करने के उद्देश्य से अंग्रेजों के द्वारा एक सुनियोजित तरीके से जो प्रयास किये गए थे,उनमें ये भी एक प्रमुख है। 

हर  मुग़ल सम्राट की तरह सिकंदर जब सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत देश मे आया तो उसकी भी अन्य मुगलों की भांति भारत पर कब्ज़ा करने की इच्छा हुई। पोरस के बारे में सुनने के बाद सिकंदर ने पोरस को अपने साथ शामिल होने का प्रस्ताव भेजा । परन्तु  भारत को अपनी  माँ के समकक्ष प्यार से सराबोर पोरस ने सिकंदर के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और वापसी सन्देश भेजा कि यदि भारत माँ को लूटने की इच्छा से हमारे देश मे आये हो तो पहले हमसे युद्ध मे जीतना होगा और जिसकी जीत होगी वही इतिहास लिखेगा। सिकंदर अच्छी तरह जानता था की भारत पर कब्ज़ा करने के लिए पुरू को हराना बहुत ज़रूरी है।
पुरू का सन्देश पढ़कर सिकंदर ने अपने सेनापतियों से मसबिरा कर झेलम नदी के पार महाराजा पुरू की सेना पर हमला बोल दिया। सिकंदर इस बात से अनजान था की झेलम नदी को पार करना उसकी सबसे बड़ी गलती साबित होगी। बरसात के दिन थे, सिकंदर की सेना नदी को पार कर ही रही थी कि नदी में बाड़ आ गयी। ऐसे हालात बन गये की एक तरफ से नदी का पानी वार कर रहा था तो दूसरी तरफ से पोरस की सेना वार कर रही थी। इस तरह पोरस और सिकंदर के इस युद्ध में सिकंदर की हार हुई। मगर कुछ इतिहासकारों के अनुसार उस युद्ध में सिकंदर के साथ उसकी पत्नी भी उसके साथ थी। जब उसे लगा की शौहर के द्वारा  महाराज पुरू को हराना बहुत कठिन हो रहा है तो उसने  सिकंदर को बचाने  के लिए  पुरू से बिनती की और भाई सम्भोदित करते हुए पुरू को राखी बाँध दी। महान सनातन सभ्यता मे भाई अपनी सगी अथवा मुँहबोली बहिन को अपने जीतेजी विधवा नही देख सकता। इस कारण पोरस ने सिकंदर को नहीं मारा और उसकी जान बक्स दी।

सिकंदर और पोरस के बीच लगभग 2 माह तक बहुत भयंकर युद्ध हुआ और सिकंदर की सेना पोरस की सेना के आक्रमण से काफी भयभीत हो गयी और वहां से लौट गयी। वहां से लौटते हुए सोनीपत के पास उन पर राजपूत जाटों का हमला हुआ और राजपूतों जैसी भारत की वीर कॉम के हमले से बचना मुश्किल था और इस  हमले में सिकंदर और उसकी बची खुची सेना बुरी तरह से घायल हुई और अधिक् चोट लगने के कारण सिकंदर की  मृत्यु हो गयी । और महाराज पुरू पंत का नाम भारत के इतिहास के वीर योद्धा राजाओं मे शामिल हो गया। यह है असल इतिहास जो यूरोपीय लोगों ने बदल दिया। यह इतिहास का सच है और यदि आप इसे ध्यानपूर्वक खोजने का प्रयास करेंगे तो आपको भारत के वीरो का इतिहास प्रमाण सहित उन किताबों में मिल जायेगा जो अंग्रेजों के हाथ से बच गयीं ।भारत के नोजवानो को इन वीर महापुरुषों के जीवन और उनकी मर्यादाओं से प्रेरणा लेनी चाहिए। जय हिन्द जय भारत।






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