सनातन संस्कृति ने वैसे तो कई अमूल्य उपहार मानव सभ्यता को प्रदान किये हैं उनमें से अंकगणित का अपने आप मे आज के विज्ञानं को बहुत बड़ा योगदान है। इस विद्या को संसार की सबसे पुरातन और अनमोल देन कहना कोई अतिशयोक्ति नही होगी। यह विज्ञान हमारे आदि ऋषि- मुनियों ने हमें विरासत मे प्रदान किया है। जिस समय विश्व के पास गड़्ना करने का कोई साधन नही था उस समय हमारे पूर्वजों ने इस ज्ञान को खगोल की गणना करने मे प्रारम्भ किया था। जब विश्व के अन्य समुदायों चाहे वह सनातन संस्कृति की अन्य शाखा ही क्यों न हो , अंकों का ज्ञान नही रहा होगा, तब हमारे पूर्वज कठिन से कठिन गणनायें किया करते थे। वैदिक गणित एक ऐसी अंकविद्याया है जिसके प्रयोग से गणित की गणनायों को बहुत ही कम समय में बिना किशी अन्य संसाधन के हल करना सम्भव है और आज के प्रचलित अंक गणना से आसान भी है।
विदेशों में लोग मानने लगे हैं कि वैदिक विधि से गणित के हिसाब लगाने में न केवल मजा आता है बल्कि उससे आत्मविश्वास मे भी बृधी होती है और स्मरणशक्ति भी बढ़ती है।
जर्मनी में एक नियमित टेलीविजन का कार्यक्रम है विसन फोर अख्त। सबसे बड़े रेडियो और टेलीविजन नेटवर्क एआरडी के इस कार्यक्रम में, हर शाम आठ बजे होने वाले मुख्य समाचारों से ठीक पहले, भारतीय मूल के विज्ञान पत्रकार रंगा योगेश्वर केवल दो मिनटों में ज्ञान-विज्ञान से संबंधित किसी दिलचस्प प्रश्न का सहज और सरल उत्तर देते हैं। कुछ दिन पहले रंगा योगेश्वर बता रहे थे कि भारत की क्या अपनी कोई अलग गणित है? वहाँ के लोग क्या किसी दूसरे ढंग से हिसाब लगाते हैं?
भारत में भी कम ही लोग जानते हैं कि भारत की अपनी अलग अंकगणित है, वैदिक अंकगणित। भारत के स्कूलों में वह शायद ही पढ़ाई जाती है। भारत के शिक्षाशास्त्रियों का भी यही विश्वास है कि असली ज्ञान-विज्ञान वही है जो इंग्लैंड-अमेरिका से आता है।
घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध। लेकिन आन गाँव वाले अब भारत की वैदिक अंकगणित पर चकित हो रहे हैं और उसे सीख रहे हैं। बिना कागज-पेंसिल या कैल्क्युलेटर के मन ही मन हिसाब लगाने का उससे सरल और तेज तरीका बन गया है। रंगा योगेश्वर ने जर्मन टेलीविजन दर्शकों को कई उदाहरण से इसे समझाया है।
उन्होंने कहा, ‘मान लें कि हमें 889 में 998 का गुणा करना है। प्रचलित तरीके से यह इतना आसान नहीं है। भारतीय वैदिक तरीके से उसे ऐसे करेंगे- दोनों का सब से नजदीकी पूर्णांक एक हजार है। उन्हें एक हजार में से घटाने पर मिले 2 और 111। इन दोनो का गुणा करने पर मिलेगा 222। अपने मन में इसे दाहिनी ओर लिखें। अब 889 में से उस दो को घटाएँ, जो 998 को एक हजार बनाने के लिए जोड़ना पड़ा। मिला 887। इसे मन में 222 के पहले बायीं ओर लिखें। यही, यानी 887 222, सही गुणनफल है।’
भारत के वैदिक गणित को यूनान और मिस्र से भी पुरातन जाना जाता है। शून्य और दशमलव तो भारत की देन हैं ही, कहते हैं कि यूनानी गणितज्ञ पाइथागोरस का प्रमेय भी भारत में पहले से ही ज्ञात था।
वैदिक विधि से बड़ी संख्याओं का जोड़-घटाना और गुणा-भाग ही नहीं, वर्ग और वर्गमूल, घन और घनमूल निकालना भी संभव है। इस बीच इंग्लैंड, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में बच्चों को वैदिक गणित सिखाने वाले स्कूल भी खुल गए हैं।
ऑस्ट्रेलिया के कॉलिन निकोलस साद वैदिक गणित के रसिया हैं। उन्होंने अपना उपनाम ‘जैन’ रख लिया है और ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स प्रांत में बच्चों को वैदिक गणित सिखाते हैं।
उनका दावा है- ‘अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा गोपनीय तरीके से वैदिक गणित का कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले रोबेट बनाने में उपयोग कर रहा है। नासा वाले समझना चाहते हैं कि रॉबट में दिमाग की नकल कैसे की जा सकती है ताकि रोबेट ही दिमाग की तरह हिसाब भी लगा सके- उदाहरण के लिए कि 96 गुणे 95 कितना हुआ….9120’.
कॉलिन निकोलस साद ने वैदिक गणित पर किताबें भी लिखी हैं। बताते हैं कि वैदिक गणित कम से कम ढाई से तीन हजार साल पुरानी है। उस में मन ही मन हिसाब लगाने के 16 सूत्र बताए गए हैं, जो साथ ही सीखने वाले की स्मरणशक्ति भी बढ़ाते है।
साद अपने बारे में कहते हैं, ‘मेरा काम अंकों की इस चमकदार प्राचीन विद्या के प्रति बच्चों में प्रेम जगाना है। मेरा मानना है कि बच्चों को सचमुच वैदिक गणित सीखना चाहिए। भारतीय योगियों ने उसे हजारों साल पहले विकसित किया था। आप उन से गणित का कोई भी प्रश्न पूछ सकते थे और वे मन की कल्पनाशक्ति से देख कर फट से जवाब दे सकते थे। उन्होंने तीन हजार साल पहले शून्य की अवधारणा प्रस्तुत की और दशमलव वाला बिंदु सुझाया। उनके बिना आज हमारे पास कंप्यूटर होना सम्भव नहीं होता।’
साद ने मानो वैदिक गणित के प्रचार-प्रसार का व्रत ले रखा है, उनका कहना है कि वे पिछले 25 सालों से लोगों को वैदिक गणित के बारे मे विस्तार से बता रहे हैं कि आप अपने बच्चों के लिए सबसे अच्छा काम यही कर सकते हैं कि उन्हें वैदिक गणित सिखाएँ। इससे आत्मविश्वास, स्मरणशक्ति और कल्पनाशक्ति बढ़ती है। इस गणित के 16 मूल सूत्र जानने के बाद बच्चों के लिए हर ज्ञान की खिड़की खुल जाती है जैसा कि आज के प्रचलित गणित से उतना सम्भव नही है।
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