इस तथ्य को विश्व के सभी इतिहासकार , धार्मिक विद्वान् ,और वैज्ञानिक स्वीकार कर चुके हैं कि वैदिक धर्म सबसे प्राचीन धर्म है और सभी धर्मों का मूल आधार है। वेदों के सिद्धांत भी विज्ञानं की कसौटी पर खरे पाए गए हैं क्योंकि ब्रह्मा जी ने चारों दिशाओं से सब्द सुने थे जिनको उन्होंने लिखा जो आगे चलकर वेदवाणी कहलाई ।इनके सिद्धांत सार्वभौमिक और अटल हैं और एकेश्वरवाद (Monotheism ) पर आधारित हैं।
लेकिन बड़े दुःख की बात है कि वेदों की वैदिक संस्कृति का अक्षरत्या पालन करने वाले सनातनी वैदिक सिद्धांत एकोहम् बहुस्यामः को जानते हुए एक ईश्वर की जगह , भूत प्रेत समसान व् कब्रों तक की पूजा करते है मान्यता है कि ईस्वर सर्वत्र व्याप्त है परंतु मुसलमान लोग केवल एक के अलावा अन्य देवी देवताओं को बुत परस्ती कहते है और ऐसा करने वाले हिन्दुओं को काफ़िर कहते हैं . एकेश्वरवाद एक वैदिक सिद्धांत है , जो भारत से निकल कर ईरान से होते हुए पुरे मध्य एशिया तक फ़ैल गया था। जिसे इस्लाम ने भी स्वीकार कर लिया। बाद में सिख धर्म ने भी एकेश्वरवाद की पुष्टि कर दी और कहा कि बगैर गुरु को धारण किये बगैर आप ईस्वर प्राप्ति आसानी से नही कर सकेंगे। इसलिए गुरु करना जरूरी है । ईस्वर प्राप्ति के मार्ग मे यदि सतगुरु मिल जाये तो सोने मे सुहागा हो जाये।
प्रमाण के लिए उपनिषद् , कुरान और श्रीगुरु ग्रन्थ साहब के ऐसे अंश दिए जा रहे हैं ,जिनमे कुछ शब्दों के अंतर जरुर हैं ,लेकिन सबका आशय और भाव एक ही है .
1-वैदिक धर्म
“दिव्यो ह्य मूर्तः पूरुषः सबाह्यान्तारो ह्यजः ,
अप्रमाणो ह्यमनाः शुभ्रो ह्यक्षरात परतः परः .
मुण्डकोपनिषद -मुण्डक 2 मन्त्र 2
अर्थ -”ईस्वर सर्वत्र व्याप्त है ,वह जन्म के विकार से रहित उसके न् तो प्राण हैं ,न इन्द्रियां है ,न मन है और न ही वह स्त्री है और न पुरुष। वह इनके विना ही सब कुछ करने में समर्थ हैं ।वह क्षर पुरुष तो है ही बल्कि वह अक्षर यानि अविनाशी पुरुष भी हैं और जीवात्मा के रूप मे सर्वत्र व्याप्त है।
इसी प्रकार एक और जगह कहा गया है ,
“दिव्यो ह्य मूर्तः पूरुषः सबाह्यान्तारो ह्यजः ,
अप्रमाणो ह्यमनाः शुभ्रो ह्यक्षरात परतः परः .
मुण्डकोपनिषद -मुण्डक 2 मन्त्र 2
अर्थ -”ईस्वर सर्वत्र व्याप्त है ,वह जन्म के विकार से रहित उसके न् तो प्राण हैं ,न इन्द्रियां है ,न मन है और न ही वह स्त्री है और न पुरुष। वह इनके विना ही सब कुछ करने में समर्थ हैं ।वह क्षर पुरुष तो है ही बल्कि वह अक्षर यानि अविनाशी पुरुष भी हैं और जीवात्मा के रूप मे सर्वत्र व्याप्त है।
इसी प्रकार एक और जगह कहा गया है ,
” न तस्य कश्चित् पतिरस्ति लोके ,
न चेशिता नैव च तस्य लिङ्गम ,
स कारणम करणाधिपाधिपो ,
न चास्य कश्चित्जनिता न चाधिपः
श्वेताश्वतर उपनिषद -अध्याय 6 मन्त्र 9
अर्थ -“सम्पूर्ण लोक में उसका कोई स्वामी नही है और न कोई उसपर शासन करने वाला है। वही कारण और सभी कारणों का अधिपति है। न किसी ने उसे जन्म दिया है और न कोई उसका पालक ही है ।
न चेशिता नैव च तस्य लिङ्गम ,
स कारणम करणाधिपाधिपो ,
न चास्य कश्चित्जनिता न चाधिपः
श्वेताश्वतर उपनिषद -अध्याय 6 मन्त्र 9
अर्थ -“सम्पूर्ण लोक में उसका कोई स्वामी नही है और न कोई उसपर शासन करने वाला है। वही कारण और सभी कारणों का अधिपति है। न किसी ने उसे जन्म दिया है और न कोई उसका पालक ही है ।
2-इस्लाम
قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ ١ اللَّهُ الصَّمَدُ ٢ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ ٣ وَلَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُوًا أَحَدٌ ٤ “
سورة الإخلاص -112:
“कुल हुवल्लाहू अहद .अल्लाहुससमद .लम यलिद व् लम यूलद .व् लम यकुन कुफ़ुवन अहद
“सूरा इखलास -112
अर्थ -कह दो कि अल्लाह एक है ,अल्लाह निराकार और सर्वाधार है ,उसकी कोई औलाद नहीं है और न वह किसी की औलाद है .और कोई ऐसा नहीं जो उसके बराबर हो ।यहां पर प्रतिस्पर्धा की भावना आ गयी, जो कि सुख, शांति और आनंद मे बाधक है।
قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ ١ اللَّهُ الصَّمَدُ ٢ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ ٣ وَلَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُوًا أَحَدٌ ٤ “
سورة الإخلاص -112:
“कुल हुवल्लाहू अहद .अल्लाहुससमद .लम यलिद व् लम यूलद .व् लम यकुन कुफ़ुवन अहद
“सूरा इखलास -112
अर्थ -कह दो कि अल्लाह एक है ,अल्लाह निराकार और सर्वाधार है ,उसकी कोई औलाद नहीं है और न वह किसी की औलाद है .और कोई ऐसा नहीं जो उसके बराबर हो ।यहां पर प्रतिस्पर्धा की भावना आ गयी, जो कि सुख, शांति और आनंद मे बाधक है।
3-सिख धर्म
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ਜਪੁ ॥ ਆਦਿ ਸਚੁ ਜੁਗਾਦਿ ਸਚੁ ॥ਹੈ ਭੀ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਹੋਸੀ ਭੀ ਸਚੁ ॥੧
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥ जपु ॥ आदि सचु जुगादि सचु ॥ है भी सचु नानक होसी भी सचु ॥॥ १॥
श्रीगुरुग्रंथ साहब – मूलमन्त्र
अर्थ -इश्वर है ,उसका नाम ओंकार और सत्य है .वह जगतका कर्ता है, निर्भय है ।वर हर प्रकार के वैर से रहित काल से परे है ,वह अजन्मा और स्वयंभू है .गुरु के प्रसाद से उसी के नाम का जाप करो ।वह ईश्वर प्रारंभ में भी सत्य है और युगों तक सत्य ही रहेगा “
वेद और कुरान के उदाहरण देने से हमारा उदेश्य किशी एक धर्म को वैध सिद्ध करना नहीं है और उसका महिमामंडन करना भी नहीं है ।
यह वैदिक ज्ञान जो सबसे प्रारंभिक और पुरातन ज्ञान है, भारत से ही अरब और अन्य देशों मे गया था । दूसरों का धन चुराने वाले को धनवान नहीं कहा जा सकता ।जहाँ तक श्रीगुरु ग्रन्थ साहब की बात है ,तो उसमे ऐसी हजारों बातें मौजूद है ,जो वेदों की शिक्षा से मेल खाती हैं ।
हमारा वास्तविक उदेश्य तो उन हिन्दुओं को धर्म के बारे में सही बात बताना है ,जो पाखंड को ही धर्म समझ रहे हैं और धर्म की जड़ काट कर पत्तों की सिंचाई कर रहे हैं .और ईश्वर की उपासना की जगह अनेकों देवी देवता , भुत प्रेत , पैगम्बर, पीर , क़ुतुब, औलिया और कब्रों पर भी सर झुकाते है , इनके लिए गीता में कहा गया है ,
यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये जयन्ते तामसा जनाः॥17/4
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ਜਪੁ ॥ ਆਦਿ ਸਚੁ ਜੁਗਾਦਿ ਸਚੁ ॥ਹੈ ਭੀ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਹੋਸੀ ਭੀ ਸਚੁ ॥੧
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥ जपु ॥ आदि सचु जुगादि सचु ॥ है भी सचु नानक होसी भी सचु ॥॥ १॥
श्रीगुरुग्रंथ साहब – मूलमन्त्र
अर्थ -इश्वर है ,उसका नाम ओंकार और सत्य है .वह जगतका कर्ता है, निर्भय है ।वर हर प्रकार के वैर से रहित काल से परे है ,वह अजन्मा और स्वयंभू है .गुरु के प्रसाद से उसी के नाम का जाप करो ।वह ईश्वर प्रारंभ में भी सत्य है और युगों तक सत्य ही रहेगा “
वेद और कुरान के उदाहरण देने से हमारा उदेश्य किशी एक धर्म को वैध सिद्ध करना नहीं है और उसका महिमामंडन करना भी नहीं है ।
यह वैदिक ज्ञान जो सबसे प्रारंभिक और पुरातन ज्ञान है, भारत से ही अरब और अन्य देशों मे गया था । दूसरों का धन चुराने वाले को धनवान नहीं कहा जा सकता ।जहाँ तक श्रीगुरु ग्रन्थ साहब की बात है ,तो उसमे ऐसी हजारों बातें मौजूद है ,जो वेदों की शिक्षा से मेल खाती हैं ।
हमारा वास्तविक उदेश्य तो उन हिन्दुओं को धर्म के बारे में सही बात बताना है ,जो पाखंड को ही धर्म समझ रहे हैं और धर्म की जड़ काट कर पत्तों की सिंचाई कर रहे हैं .और ईश्वर की उपासना की जगह अनेकों देवी देवता , भुत प्रेत , पैगम्बर, पीर , क़ुतुब, औलिया और कब्रों पर भी सर झुकाते है , इनके लिए गीता में कहा गया है ,
यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये जयन्ते तामसा जनाः॥17/4
अर्थात सात्विक लोग तो सिर्फ ईश्वर की उपासना करते हैं और राजसी लोग यक्ष ,रक्ष ( semi gods ) की पूजा करते हैं , जो सिर्फ कल्पित व्यक्ति यानि अर्ध मानव है और सबसे निकृष्ट वह तामसी लोग हैं वह भूत यानि मुर्दों की कब्रों ,इत्यादि की पूजा करते है और तंत्र मन्त्र टोना टुटका झड़ी को मानते है और उस पर विस्वास करते हैं।
यही नहीं अज्ञानी लोग मुसलमानों की नक़ल करके भूखे रहने को ही तप समझते है ।कोई भी धर्म ग्रन्थ हमको भूखा रहकर ईस्वर प्राप्ति को पाने की इज़ाज़त नही देता। यह तो मात्र मन का सुधीकरण और मन को विचलित होने से बचाने के लिए जप, तप और व्रत, रोजा इत्यादि का नियम बनाया गया है क्योंकि मन ही ईस्वर प्राप्ति मे सबसे बड़ा बाधक है। अक्सर देखा गया है कि कुछ लोग दिन भर तो भूखे रहते हैं और शाम को चौगुना भोजन खा लेते है ।
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।
दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः॥17/5
अर्थात शास्त्र विरुद्ध होने पर भी किसी की देखादेखी जो लोग घोर तप् करते हैं ,वह पाखंडी ,अहंकारी और दिखावे की कामना से करते हैं , यह तप नहीं है .क्योंकि योग सूत्र में कहा है ,”सुखे दुखे समौ भूत्वा समत्वं योग उच्यते “ यही गीता में कहा है
,
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥3/28
अर्थात सुख और दुःख , हार और जीत , लाभ और हानि की परवाह किये बिना ही धर्म की रक्षा के लिए हम युद्ध करेंगे तो हमें कोई पाप नहीं लगेगा ।
यानी पाप तो तब लगेगा जब हम मूक दर्शक बने तमाशा यानि देखते रहेंगे या सोचते रहेंगे कि यदि हम सत्य और धर्म का साथ देंगे तो हमें सम्प्रदायवादी कहेंगे .
भर्तरि शतक में एक श्लोक है ,
यही नहीं अज्ञानी लोग मुसलमानों की नक़ल करके भूखे रहने को ही तप समझते है ।कोई भी धर्म ग्रन्थ हमको भूखा रहकर ईस्वर प्राप्ति को पाने की इज़ाज़त नही देता। यह तो मात्र मन का सुधीकरण और मन को विचलित होने से बचाने के लिए जप, तप और व्रत, रोजा इत्यादि का नियम बनाया गया है क्योंकि मन ही ईस्वर प्राप्ति मे सबसे बड़ा बाधक है। अक्सर देखा गया है कि कुछ लोग दिन भर तो भूखे रहते हैं और शाम को चौगुना भोजन खा लेते है ।
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।
दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः॥17/5
अर्थात शास्त्र विरुद्ध होने पर भी किसी की देखादेखी जो लोग घोर तप् करते हैं ,वह पाखंडी ,अहंकारी और दिखावे की कामना से करते हैं , यह तप नहीं है .क्योंकि योग सूत्र में कहा है ,”सुखे दुखे समौ भूत्वा समत्वं योग उच्यते “ यही गीता में कहा है
,
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥3/28
अर्थात सुख और दुःख , हार और जीत , लाभ और हानि की परवाह किये बिना ही धर्म की रक्षा के लिए हम युद्ध करेंगे तो हमें कोई पाप नहीं लगेगा ।
यानी पाप तो तब लगेगा जब हम मूक दर्शक बने तमाशा यानि देखते रहेंगे या सोचते रहेंगे कि यदि हम सत्य और धर्म का साथ देंगे तो हमें सम्प्रदायवादी कहेंगे .
भर्तरि शतक में एक श्लोक है ,
“निन्दन्तु नीति निपुणा , यदि वा स्तुवन्ति ,
लक्ष्मी समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम
अद्यैव मरणमस्तु युगान्तरे वा
न्यायात पथः प्रविचलन्ति पदम् न धीराः .
लक्ष्मी समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम
अद्यैव मरणमस्तु युगान्तरे वा
न्यायात पथः प्रविचलन्ति पदम् न धीराः .
अर्थात – चाहे बातों में निपुण लोग हमारी निंदा करें या हमारी तारीफ़ करें ,चाहे हमारे पास धन का भंडार हो जाये या हम कंगाल हो जाएँ ,और चाहे हम आज ही मर जाएँ , या युगों तक जीवित रहें . लेकिन सत्य के मार्ग से कभी विचलित नहीं हो सकते .
और यदि मानते हैं कि वैदिक धर्म प्रमाणिक है तो उसको बचाने , और धर्म के बहाने होने वाले आतंक का विरोध करिए
हमें उपलब्ध सभी साधनों का उपयोग करके देश द्रोहियों और धर्म के शत्रुओं का मुकाबला करना होगा ।यही धर्म है
“विनाशाय च दुष्क्रताम “
और यदि मानते हैं कि वैदिक धर्म प्रमाणिक है तो उसको बचाने , और धर्म के बहाने होने वाले आतंक का विरोध करिए
हमें उपलब्ध सभी साधनों का उपयोग करके देश द्रोहियों और धर्म के शत्रुओं का मुकाबला करना होगा ।यही धर्म है
“विनाशाय च दुष्क्रताम “
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