इस्लाम में मूंछे रखना हराम है | आखिर इसके पीछे क्या कारण हो सकते है | एक ओर तो लंबी लंबी दाढ़ी और दूसरी ओर मूंछे नदारद | मूंछे न रहने के पीछे के कारण का पता लगाया गया तो बहुत हीं हैरान करने वाली बातें सामने आयीं जिसे सुन कर हर कोई दंग हो सकता है |
मुस्लिमों के पवित्र कुरान सरीफ में वर्णित है की तुम जो चीज भी जाया करोगे अल्लाह उस प्रत्येक वस्तु का हिसाब लेगा | अर्थात हम जो भी चीज बर्बाद करेंगे, एक न एक दिन उसका खामियाजा हमें भुगतना हीं होगा |
अब आतें हैं मूछें न रखने के पीछे के कारण पर | इस्लाम को मानने वालों का मानना है कुरान अनुसार जो पानी हम पीतें हैं मूंछों के रहने पर पानी की एकाध बूँद मूंछ में फंसी रह सकती है और वह पानी बर्बाद माना जायेगा और अल्लाह उस पानी की बूँद का भी हिसाब लेगा | बहुत हीं उम्दा बात कही गयी है कुरान की इन आयतों के सार को किशी धर्म विशेष के अलावा भी विश्व के प्रत्येक मनुष्य को मानना चाहिए | जिस चीज को हम उत्पन्न नही कर सकते हमें उस वस्तु को बर्बाद करने का हक नहीं है लोग सादी व्याहों आदि समारोहों में लोगो को अन्न बर्बाद करते देखा है जो की गलत है |
इस्लाम का प्रारम्भ अरब देशों से हुआ इसलिए ये तर्क ठीक मालूम होती है क्योंकि अरब मुल्कों में तेल तो है लेकिन पानी की कमी है | कुरान का ज्ञान कंही न कंही उचित प्रतीत होता है।
अब बुतपरस्ती पर आतें हैं बुत यानी की statue. हिन्दू मूर्तिपूजा क्यों करतें हैं ? बुत शब्द का उदभव बुद्ध शब्द से हुआ है | बुद्ध अर्थात जो आत्मज्ञान को प्राप्त कर चुका है जो जीते जी आत्मा को जान चुका है परमात्मा का अंश हो चुका है,ऐसे लोगों की पूजा तो हर धर्म में होती है |
हिंदुओं की वास्तविक मूर्तिपूजा पत्थर की मूर्तिपूजा के पीछे का रहस्य है साकार से निराकार की ओर यात्रा करना | जो असीम है जो अनंत है क्या उसकी कल्पना हमारे जहन में नही समा सकता है , यहाँ मुस्लिम पाठकों से अनुरोध करूँगा की वे बताएं की अल्लाह की बंदगी के वक्त अल्लाह के सम्बन्ध में उनके भीतर कौन सी तस्वीर उभरती है ~ यदि शून्य को यानि निराकार को मानतें हैं तो अल्लाह की भी शून्य की तस्वीर उभरतीं हीं होगी। मूर्तिपूजा मे भी इश्वर की मूर्ति की पूजा से प्रारम्भ करके धीरे धीरे हम उसके चरित्र में समाते जातें हैं और हम पातें हैं की वह इश्वर जिसकी मूर्ति पूजा हम कर रहें है वह तो अनंत है निराकार है|
दूसरा कुछ मूर्तियां जागृत होतीं है एक अध्यात्मिक विज्ञानं के तहत इसको प्रमाणित किया गया है | मूर्ति स्थापना के क्रम में सिद्ध पुरुषों के द्वारा उस मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है | जिसके तहत भक्त अपने प्राण को मूर्ति में प्रतिष्ठित करता है | अब जो मूर्ति आत्म प्राणमय हो जाये उसकी पूजा करने में किसको आपति होगी | पूरा जगत दृश्यमान है जो दिखता है मूर्ति हीं है सजीव या निर्जीव सब मूर्ति हीं है | इस बात को दृष्टि में रख कर मूर्ति पूजा कौन नहीं करता ?
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