22 अप्रैल 2016

नाथूराम गोडसे के अंतिम बयान।



दोस्तो जब नाथूराम गोडसे ने यह बयान कोर्ट के सामने दिए थे तब वहां उपस्थित लोगों की आँखों मे पानी आ गया था ।कुछ लोग तो वहां रोने लगे थे।  वहां पर उपस्थित जज महोदय को कहना पड़ा कि वहां पर उपस्थित लोगों को यदि जूरी बना दिया जाता तो निःसंदेह फैसला नाथूराम गोडसे के ही पक्ष मे आता।

नाथूराम जी ने अपने बयान में कहा था – ” सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमें अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है  । में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामकता  का सशस्त्र  प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है ।
प्रतिरोध करने और  शत्रु को बलपूर्वक वश में करनने को मैं एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूँ . मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे हों ।या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये या फिर उनके बिना काम चलाये।.महात्मा गांधी अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे।
महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे .गाँधी जी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सौंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया। गाँधी जी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ
की कीमत पर किये जाते थे। जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी . उसी ने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पाकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से
आत्मसमर्पण कर दिया।
मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गए और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई भाग भारतीय हिन्दुओं के लिए ही विदेशी भूमि बन गया । नेहरु और उनके चाटुकार की स्वीकारोक्ति  से ही एक धर्म के आधार पर अलग राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई स्वतंत्रता कहते है। और, किसका बलिदान ? 
जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी जी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है और जिसको खंडित और लुटते हुए हमारे पूर्वज सदियों से ये तमाशा देख चुके थे आज हमको आर्यव्रत को फिर विभक्त होते देखना भुत कष्टकारी था। ये देखकर मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया .मैं निडर और देशप्रेम से ओतप्रोत होकर साहस पूर्वक कहता हूँ की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गए। उन्होंने स्वयं को पाकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया।
मैं कहता हूँ की मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नीतियों और कार्यो से करोड़ों हिन्दुओं को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला। ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उनको उस  अपराधी को सजा दिलाई जा सके, इसीलिए मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया।
मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मैंने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्यांकन करेंगे। जय हिन्द

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