भारत की अंग्रेजों से आजादी के वीर नायक क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की मौत के पीछे जवाहर लाल नेहरू उर्फ़ गयासुद्दीन गाज़ी की भूमिका रही थी। नेहरू ने ही अंग्रेजों को यह सूचना दी थी कि क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद कहां छिपे हुए हैं यह आरोप खुद चंद्रशेखर आजाद के भतीजे ने लगाया है। गौरतलब है कि इससे पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिजन भी नेताजी की मौत के रहस्य को लेकर नेहरू और तत्कालीन कांग्रेस सरकार को कठघरे में खड़ा कर चुके हैं।
क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के भतीजे सुजीत आजाद ने यूपी पत्रिका को एक कार्यक्रम मे बताया कि, जवाहर लाल नेहरू ने ही अंग्रेजों को चंद्रशेखर आजाद के कंपनी बाग में होने की सूचना दी थी। इसके बाद अंग्रेजों ने उनको घेर लिया था। लेकिन फिर भी क्रांतिकारी आजाद देश के गद्दारों से अपनी आखिरी गोली तक अंग्रेजों से लडे़ थे।
कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि विद्यार्थी जी के कहने पर भगत सिंह की आजादी के लिए चंद्रशेखर आजाद खुद HSRA का खजाना लेकर नेहरू के पास गए थे। सुजीत ने आरोप लगाया कि न केवल HSRA का खजाना हड़प लिया गया बल्कि आजाद के साथ धोखा भी किया गया।
सुजीत आजाद ने भारत सरकार से जवाहरलाल नेहरू का भारत रत्न छीनने की मांग की साथ ही उन्होंने जेएनयू में भारत विरोधी नारे लगाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग भी की। स्वतंत्रता सेनानी भवन में आयोजित कार्यक्रम में सुजीत सरकार ने कहा कि देश की स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान ही सत्ता हथियाने के षड्यंत्र रचे जाने लगे।
पंखे बाइंडिंग करके जीवन यापन करने वाले सुजीत ने कहा कि जंग-ए-आजादी के लिए क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी खजाना लूटा और इलाहाबाद में आनंद भवन में मोती लाल नेहरू को सौंपा था। आज यह बात साबित हो चुकी है तो गांधी परिवार को चंद्रशेखर आजाद द्वारा सौंपे गए खजाने का हिसाब देना चाहिए। इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी शहीदों के परिजनों ने मिलकर ज्ञापन दिया था।
आजाद के भतीजे एवं हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष ने कहा कि 68 साल बाद भी शहीदों के परिवार आर्थिक संकट में हैं। बदहाली का जीवन जीने को मजबूर हैं। शहीदों के 90 फीसदी परिवारों के यहां आज भी एक वक्त ही चूल्हा जलता है। उन्होंने मांग की कि शहीदों के उत्तराधिकारी और परिजनों को मान, सम्मान और आर्थिक सहायता की जरूरत है। केंद्र व प्रदेश सरकारों को चाहिए कि सर्वे कराकर शहीदों के परिवार को आर्थिक मदद दें।
इस बारे में संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख अजय मित्तल का कहना है कि नेहरू के जमाने के एक गुप्तचर अधिकारी धर्मेंद्र गौड़ ने रिटायर होने के बाद कई खुलासे किए थे। वह अपनी किताब में लिखते हैं कि जिस दिन आजाद की मृत्यु हुई, उस दिन आजाद नेहरू से मिलने आनंद भवन गए थे। यहां नेहरू और उनमें तकरार हुई। इसके बाद वह सीधे कंपनी बाग चले गए। वहां 80 पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया। यहां पर आजाद ने अपनी ही एक गोली से खुद की जान ले ली थी।
उन्होंने कहा कि नेहरू ने ही अंग्रेजों को आजाद की लोकेशन के बारे में जानकारी दी हो। सुजीत आजाद की बात से ये बात और भी पुख्ता होती है कि क्रांतिवीर आज़ाद की हत्या कराने के पीछे नेहरू का हाथ था। नेहरू के बारे में लाल बहादुर शास्त्री ने भी लिखा है कि जब काकोरी कांड के कुछ लोग बरी होकर इलाहाबाद पहुुंचे थे तो उनके स्वागत करने वालों को नेहरू ने रोका था। नेहरू ने उन लोगों से कहा था कि अगर आप उनके स्वागत में जाओगे तो अंग्रेज नाराज हो जाएंगे। अजय मित्तल का कहना है कि सुजीत की मांग बेहद जायज है और नेहरू परिवार शुरू से ही क्रांतिकारियों का विरोधी रहा है। वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता धर्मवीर दिवाकर का कहना है कि जवाहरलाल नेहरू देशभक्त थे आैर उन्हें आजाद की शहादत का काफी गम था। धर्मवीर दिवाकर का यह बयान हास्यापद लगता है।
क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के भतीजे सुजीत आजाद ने यूपी पत्रिका को एक कार्यक्रम मे बताया कि, जवाहर लाल नेहरू ने ही अंग्रेजों को चंद्रशेखर आजाद के कंपनी बाग में होने की सूचना दी थी। इसके बाद अंग्रेजों ने उनको घेर लिया था। लेकिन फिर भी क्रांतिकारी आजाद देश के गद्दारों से अपनी आखिरी गोली तक अंग्रेजों से लडे़ थे।
कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि विद्यार्थी जी के कहने पर भगत सिंह की आजादी के लिए चंद्रशेखर आजाद खुद HSRA का खजाना लेकर नेहरू के पास गए थे। सुजीत ने आरोप लगाया कि न केवल HSRA का खजाना हड़प लिया गया बल्कि आजाद के साथ धोखा भी किया गया।
सुजीत आजाद ने भारत सरकार से जवाहरलाल नेहरू का भारत रत्न छीनने की मांग की साथ ही उन्होंने जेएनयू में भारत विरोधी नारे लगाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग भी की। स्वतंत्रता सेनानी भवन में आयोजित कार्यक्रम में सुजीत सरकार ने कहा कि देश की स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान ही सत्ता हथियाने के षड्यंत्र रचे जाने लगे।
पंखे बाइंडिंग करके जीवन यापन करने वाले सुजीत ने कहा कि जंग-ए-आजादी के लिए क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी खजाना लूटा और इलाहाबाद में आनंद भवन में मोती लाल नेहरू को सौंपा था। आज यह बात साबित हो चुकी है तो गांधी परिवार को चंद्रशेखर आजाद द्वारा सौंपे गए खजाने का हिसाब देना चाहिए। इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी शहीदों के परिजनों ने मिलकर ज्ञापन दिया था।
आजाद के भतीजे एवं हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष ने कहा कि 68 साल बाद भी शहीदों के परिवार आर्थिक संकट में हैं। बदहाली का जीवन जीने को मजबूर हैं। शहीदों के 90 फीसदी परिवारों के यहां आज भी एक वक्त ही चूल्हा जलता है। उन्होंने मांग की कि शहीदों के उत्तराधिकारी और परिजनों को मान, सम्मान और आर्थिक सहायता की जरूरत है। केंद्र व प्रदेश सरकारों को चाहिए कि सर्वे कराकर शहीदों के परिवार को आर्थिक मदद दें।
इस बारे में संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख अजय मित्तल का कहना है कि नेहरू के जमाने के एक गुप्तचर अधिकारी धर्मेंद्र गौड़ ने रिटायर होने के बाद कई खुलासे किए थे। वह अपनी किताब में लिखते हैं कि जिस दिन आजाद की मृत्यु हुई, उस दिन आजाद नेहरू से मिलने आनंद भवन गए थे। यहां नेहरू और उनमें तकरार हुई। इसके बाद वह सीधे कंपनी बाग चले गए। वहां 80 पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया। यहां पर आजाद ने अपनी ही एक गोली से खुद की जान ले ली थी।
उन्होंने कहा कि नेहरू ने ही अंग्रेजों को आजाद की लोकेशन के बारे में जानकारी दी हो। सुजीत आजाद की बात से ये बात और भी पुख्ता होती है कि क्रांतिवीर आज़ाद की हत्या कराने के पीछे नेहरू का हाथ था। नेहरू के बारे में लाल बहादुर शास्त्री ने भी लिखा है कि जब काकोरी कांड के कुछ लोग बरी होकर इलाहाबाद पहुुंचे थे तो उनके स्वागत करने वालों को नेहरू ने रोका था। नेहरू ने उन लोगों से कहा था कि अगर आप उनके स्वागत में जाओगे तो अंग्रेज नाराज हो जाएंगे। अजय मित्तल का कहना है कि सुजीत की मांग बेहद जायज है और नेहरू परिवार शुरू से ही क्रांतिकारियों का विरोधी रहा है। वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता धर्मवीर दिवाकर का कहना है कि जवाहरलाल नेहरू देशभक्त थे आैर उन्हें आजाद की शहादत का काफी गम था। धर्मवीर दिवाकर का यह बयान हास्यापद लगता है।
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