12 अप्रैल 2016

अंग्रेजों का भारत मे आना यानि भारत को भृस्ट राष्ट्र बनाकर लूटना।

ब्रिटिश काल मे भारत मे भ्रष्टाचार

अंग्रेजों ने भारत के राजा महाराजाओं को फूट डालो और राज करो के सिद्धांत परऔर आम जनमानस को असुरक्षित कर भ्रस्टाचार करने की दिशा मे काम करके  भारत को गुलाम बनाया। भारत में भ्रष्टाचार  वर्तमान और पूर्व के शासनकाल का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है, लेकिन भ्रष्टाचार ब्रिटिश शासनकाल में ही होने लगा था जो कि वे हमारे राजनेताओं को विरासत में दे गए ।
भारत छोड़कर जाते-जाते भी अंग्रेजों की कुटिल बुद्धि ने भारत को आने वाले भविष्य मे गर्त मे चले जाने का रास्ता खोज लिया था इसीलिए एक लम्बे अरसे से विभिन्न समुदायों के बीच जो अतीत मे मिलजुलकर रहते थे, षड़यन्त्र पूर्वक  नफरत फैलाना शुरू कर दिया था। आचार्य धर्मेन्द्र गौड़ की पुस्तक “मैं अंग्रेजों का जासूस था” उनके द्वारा भारत छोड़ने के नफरत फैलाने के प्रमाण मौजूद  है। भारत को विभाजन की आग में झोंकने की कुटिल योजना पहले से ही उन्होंने बना ली थी जिसको गयासुद्दीन गाज़ी यानि नेहरू ने आग मे घी डालने का काम किया और अंग्रेजों के मंसूबों को पूरा करने मे कोई कोर कसर नही छोड़ी।
इतनी अधिक अराजकता इस देश में अंग्रेजों के आने से पहले कभी नहीं थी। आमतौर पर भ्रष्टाचार तथा गरीबी भारत में कहीं भी कभी भी देखने को नहीं मिलती थी। यदि कहा जाए कि गरीबी, सामान्य राजनीति और प्रशासनिक भ्रष्टाचार अंग्रेजों की देन है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मुंबई के प्रसिद्ध प्रकाशक और व्यवसायी श्री शानबाग लेखकों और साहित्यकारों में काफी प्रसिद्ध रहे हैं। फोर्ट में उनकी पुस्तकों की दुकान स्ट्रेंड बुक स्टाल एक ग्रंथ को तीर्थ ही माना जाता है। अपने देहांत से पहले शानबाग ने भारतीय संपदा और पाठकों पर बड़ा उपकार किया, जब उन्होंने विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार एवं चिंतक विल डूरा की दुर्लभ एवं लुप्तप्राय पुस्तक "द केस फॉर इंडिया" का पुन: प्रकाशन किया। यह पुस्तक अंग्रेजों द्वारा भारत की लूट ही नहीं, बल्कि भारत के प्राचीन संस्कारों, विद्या और चरित्र पर इतिहास के सबसे बड़े आक्रमण का तथ्यात्मक वर्णन करती है। इसमें उन्होंने लिखा है कि भारत केवल एक राष्ट्र ही नहीं था, बल्कि सभ्यता, संस्कृति और भाषा में विश्व को मानवता का दर्शन देने वाला महान राष्ट्र था। भारतभूमि सनातन धर्म के मूल्यों और मर्यादाओं की भूमि कही जा सकती है, हमारे दर्शन, संस्कृति और सभ्यता की मां कही जा सकती है। विश्व का ऎसा कोई  क्षेत्र नहीं था, जिसमें भारत ने सर्वोच्च स्थान न हासिल किया हो। चाहे वह वस्त्र निर्माण हो, आभूषण और जवाहरात का क्षेत्र हो, कविता और साहित्य का क्षेत्र हो, बर्तनों और महान वास्तुशिल्प का क्षेत्र हो अथवा समुद्री जहाज का निर्माण क्षेत्र हो, हर क्षेत्र में भारत ने दुनिया को अपना प्रभाव दिखाया। भारत का ज्ञान आज के विज्ञानं का आधार रहा ह
जब अंग्रेज भारत आए, तो उन्होंने राजनीतिक दृष्टि से कमजोर, लेकिन आर्थिक दृष्टि से अत्यंत वैभव और ऎश्वर्य संपन्न भारत को पाया। ऎसे देश में अंग्रेजों ने धोखाधड़ी, अनैतिकता एवं भ्रष्टाचार के माध्यम से राज्य हड़पे, अमानुषिक टैक्स लगाए, करोड़ों को गरीबी और भुखमरी के गर्त में धकेला तथा भारत की सारी संपदा व वैभव लूटकर ब्रिटेन को मालामाल किया। अकूत स्वर्ण जवाहरात हीरे जिसमें विश्व का सबसे अनमोल हीरा कोहिनूर भी है सबकुछ लूट लिया ।उन्होंने मद्रास, कोलकाता और मुंबई में हिंदू शासकों से व्यापारिक चौकियां भाड़े पर लीं और बिना अनुमति के वहां अपनी तौपें और सेनाएं रखीं। 1756 में बंगाल के राजा ने इस प्रकार के आक्रमण का जब विरोध किया और अंग्रेजों के दुर्ग फोर्ट विलियम पर हमला करके उस पर कब्जा कर लिया, तो उन्होंने एक साल बाद रॉबर्ट क्लाइव नेप्लासी के युद्ध में बंगाल को हराकर उस पर कब्जा कर लिया और एक नवाब को दूसरे से लड़ा कर लूट शुरू कर दी। सिर्फ एक साल में क्लाइव ने 11 लाख 70 हजार डॉलर की रिश्वत ली और 1 लाख 40 हजार डॉलर सालाना नजराना लेना शुरू किया। जांच में उसे गुनहगार पाया गया, लेकिन ब्रिटेन की सेवा के बदले उसे माफी दे दी गई। विल ड्यूरा लिखते हैं कि भारत से 20 लाख का सामान खरीद कर ब्रिटेन में एक करोड़ में बेचा जाता था अंग्रेजों ने अवध के नवाब को अपनी मां और दादी का खजाना लूट कर अंग्रेजों को 50 लाख डॉलर देने पर मजबूर किया फिर उस पर कब्जा कर लिया और 25 लाख डॉलर में एक दूसरे नवाब को बेच दिया।
अंग्रेजी भाषा चलाने और अंग्रेजों के प्रति दासता मजबूत करने के लिए भारतीय विद्यालयो को बन्द कर दिया गया जहां गुरुकुल की शिक्षा दी जाती थी ।और मैकाले की शिक्षा जो आज तक हमारे स्कूल, विद्यालयों मे पढ़ाई जाती है उसको लागू क्र दिया। गुरुकुल के आचार्यों को हटा दिया गया ।1911 में गोपालकृष्ण गोखले ने संपूर्ण भारतवर्ष में प्रत्येक भारतीय बच्चे के लिए अनिवार्य प्राइमरी शिक्षा का विधेयक लाने की कोशिश की, लेकिन उसे अंग्रेजों ने विफल कर दिया। 1916 में यह विधेयक फिर से लाने की कोशिश की, ताकि संपूर्ण भारतीयों को भारतीय प्रम्पराओं के अनुसार शिक्षित किया जा सके, लेकिन इसे भी अंग्रेजों ने विफल कर दिया। भारतीय सांख्यिकी के महानिदेशक सर विलियम हंटर ने लिखा है कि भारत में 4 करोड़ लोग ऎसे थे, जो अपना पेट नहीं भर पाते थे,उनको भूख और गरीबी की ओर धकेल दिया गया समृद्धसाली  भारतीय  नागरिक शारीरिक दृष्टि से कमजोर होकर महामारी के शिकार होने लगे। 1901 में विदेश से आए प्लेग के कारण 2 लाख 72 हजार भारतीय मर गए, 1902 में 50 लाख भारतीय मरे, 1903 में 8 लाख भारतीय मारे गए और 1904 में 10 लाख भारतीय भूख, कुपोषण और प्लेग जैसी महामारी के कारण मारे गए। 1918 में 12 करोड़ 50 लाख भारतीय इनफ्लूएंजा रोग के शिकार हुए, जिनमें से 1 करोड़ 25 लाख लोगों की मौत सरकारी तौर पर दर्ज हुई। समान काम के लिए अंग्रेजों को भारतीयों से 10 गुना ज्यादा वेतन दिया जाता था और अंग्रेजों से 10 गुना अधिक विद्वान भारतीय को उनकी योग्यता के अनुरूप पद नहीं दिया जाता था। दुर्भाग्यवस आज के समय पर अपने को सेक्युलर कहलाने वाली राजनैतिक पार्टियां समानता के नाम पर भारत के लोगों को जाति पाति की लड़ाई मे उलझाकर अपने हित साधने मे लगी है।परंतु इसमे जरा भी संदेह नही कि भारत फिरसे विश्व का महान राष्ट्र बनेगा जय हिन्द

कोई टिप्पणी नहीं: