पाकिस्तान और भारत भले ही कई मुद्दों पर एक दूसरे के विरोधी हों लेकिन उनमें एक समानता है। जैसा कश्मीर भारत के लिए है, वैसा हीं बलूचिस्तान पाकिस्तान के लिए है। दोनों ही देशों के इन प्रांतों में अलगाववाद और हिंसक घटनाएं अपने चरम पर है। पिछले साल कश्मीर के अलगाववादी नेता मसर्रत आलम भट्ट ने जब कश्मीर में 'मेरी जान-मेरी जान, पाकिस्तान-पाकिस्तान','तेरा-मेरा क्या अरमान, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान' के नारे लगाए, उस वक्त भारतीयों को थोड़ा गुस्सा और थोड़ा रोना आया। ठीक उसी दौरान या उसके आस-पास बलूचिस्तान के मकरन में पाकिस्तानी सेना ने ड्रोन हमले किए जिसमें पांच बलूची मारे गए थे।
कश्मीर की तरह बलूचिस्तान में भी हिंसा और अलगाववाद, दोनों पाकिस्तान की अखंडता के लिए नुकसांनदेह हैं। बलूचिस्तान में 1948 से ही पाकिस्तान से आज़ाद होने के लिए आंदोलन होते रहे हैं। ज्ञात हो पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर कब्ज़ा किया हुवा है। यहां अलगाववादियों के नेतृत्व में पाकिस्तान के खिलाफ कम से कम पांच हिंसक आंदोलन हो चुके हैं।आखिरी आंदोलन 2004 में शुरू हुआ था जो अब तक चल रहा है। बलूचिस्तान में अब सामूहिक कब्रें मिलनी आम बात हो गई है। कई बार बलूच के अलगाववादी नेताओं ने भारत से मदद की मांग भी की है। हालांकि भारत ने पिछले साल तक उन्हें ऐसी कोई मदद नहीं की थी। मोदी सरकार आने के बाद दिल्ली में एक बलूच अलगाववादी नेता के प्रतिनिधि को पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान में किए गए अमानवीय कृत्यों के बारे में बोलने की इजाजत दी। ये कहा जाता है कि मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल इसके पक्ष में हैं कि पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया जाना चाहिए। इसका असर क्या होता है, अभी ये देखना बाकि है। हालांकि बारत ने अभी भी बलूचिस्तान को खुला समर्थन नहीं दिया है जबकि पाकिस्तान कश्मीर के लिए ऐसा करता है।
बलूचिस्तान के लोगों का आरोप है कि पाकिस्तान उनके प्रांत में दूसरे लोगों को ठहरा रहा है। कश्मीर में ये भारत के संविधान के तहत दिए गए स्पेशल स्टेटस की वजह से नहीं हो सकता। यह वही विवादित धारा 370 है जिसके तहत कश्मीर में जमीन खरीदने के लिए कम से कम 5 साल तक वहां रहना जरूरी है। चूंकि वहां माहौल अच्छा नहीं है, इसलिए ना के बराबर लोग ही वहां जाते हैं। पाकिस्तानी विशेषज्ञ भी यह बात मानते हैं कि बलूचिस्तान के लिए भी एक ऐसी ही प्रावधान होना चाहिए।
दोनों हीं देश एक दूसरे पर इस अस्थिरता के लिए आरोप लगाते हैं। पाकिस्तान इस बात को स्वीकारता है कि कश्मीर मुद्दे को उसका समर्थन हासिल है जबकि भारत ने बलूचिस्तान के लिए ऐसा कभी नहीं कहा। अगर आईएसआई कश्मीर में एक्टिव है तो ये मानना बेवकूफी ही होगा कि भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ बलूचिस्तान में एक्टिव नहीं है। ये सच है कि पाकिस्तान ने कभी भी इसके पीछे ठोस सुबूत नहीं दिए जबकि कश्मीर में उसके हस्तक्षेप के हजारों सुबूत मौजूद हैं।
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे अमीर प्रांत माना जाता है लेकिन ये अमीरी वहां के लोगों को कभी भी नहीं मिली। वलूचिस्तान में शिक्षा, मेडिकल सर्विसेज या आधारभूत संरचना जैसी कोई चीज नहीं है। भारतीय कश्मीर में ऐसी जरूरी चीजों की व्यवस्था की गई है। कश्मीर का लोकतंत्र बलूचिस्तान से कहीं ज्यादा मजबूत है। भारत ने कश्मीर में निष्पक्ष चुनाव करवाया है। पाकिस्तानी अधिकृत बलूचिस्तान से किशी भी प्रकार की रिपोर्टिंग प्रंतिबंधित है।
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