26 अप्रैल 2016

ये पत्थर सतरंज की गोटें है भीम और घटोत्कच खेलते थे इनसे।

यदि आपने महाभारत की कथा पढ़ी हो या सुनी हो तो आपको मालूम होगा कि उसमें भीम और घटोत्कच का वर्णन है ।माना  जाता है कि भीम में 10 हजार हाथियों  के बराबर ताकत थी और  उनके पुत्र घटोत्कच में उनसे भी अधिक बल था। अब आप खुद ही सोच सकते हैं कि इतने बलवान लोगों का शरीर कितना विशाल होता होगा और उनके खिलौने भी बहुत बड़े होते होंगे। जी हाँ, यह सही है क्योंकि भारत में एक जगह है जहां पर शतरंज की मोहरें यानि की गोटियां रखी हुई हैं जो बहुत विशाल हैं और उनका वजन भी बहुत हैं। सतरंज का इतिहास कम से कम 1500 वर्ष पुराना है। उस समय इसका नाम चतुरंग था। यह छटी सताब्दी  मे भारत मे जन्मा और फिर फारस (ईरान ) पंहुचा। जब अरबों ने फारस को जीता तब यह यूरोप पंहुचा।
यह जगह है भारत के पूर्वोत्तर में स्थित  नागालैंड  राज्य का एक शहर दीमापुर जिसको कभी हिडिंबापुर के नाम से जाना जाता था। इस जगह महाभारत काल में हिडिंब राक्षस और उसकी बहन हिडिंबा रहा करते थे।  यही पर हिडिंबा ने भीम से विवाह किया था। आज भी यहां बहुलता में रहनेवाली डिमाशा जनजाति खुद को भीम की पत्नी हिडिंबा का वंशज मानती है। यहाँ आज भी हिडिंबा का वाड़ा है, जहां राजवाड़ी में स्थित शतरंज की ऊंची-ऊंची गोटियां पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती है। इनमे से कुछ अब टूट चुकी है। यहाँ के निवासियों कि मान्यता है  कि इन गोटियों से भीम और उनके पुत्र घटोत्कच शतरंज खेलते थे। इस जगह पांडवो ने अपने वनवास का काफी समय व्यतीत किया था। महाभारत की कथा के अनुसार वनवास काल में जब  कौरवो द्वारा सडयंत्र करके पांडवों का घर जला दिया गया तो पांडव वहां से  एक दूसरे वन में चले  गए। जहां हिडिंब राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था। एक दिन हिडिंब ने अपनी बहन हिडिंबा को वन में भोजन की तलाश करने के लिये भेजा। वन में हिडिम्बा को भीम दिखा जो की अपने सोए हुए परिवार की रक्षा के लिए पहरा दे रहा था। राक्षसी हिडिंबा को भीम पसंद आ जाता है और वो उससे प्रेम करने लग गयी,  इस कारण वो सारे पांडवो को जीवित छोड़ कर वापस आ गयी। यह बात उसके भाई हिडिंब को पसंद नहीं आयी और वो पाण्डवों को मारने चल पड़ा ।लड़ाई में हिडिंब, भीम के हाथो मारा गया।
हिडिम्ब के मरने पर वे लोग वहां से प्रस्थान की तैयारी करने लगे, इस पर हिडिम्बा पांडवों की माता कुन्ती के चरणों में गिर कर प्रार्थना करने लगी, “हे माता! मैंने आपके पुत्र भीम को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। आप लोग मुझे कृपा करके स्वीकार कर लीजिये। यदि आप लोगों ने मझे स्वीकार नहीं किया तो मैं इसी क्षण अपने प्राणों का त्याग कर दूंगी।” हिडिम्बा के हृदय में भीम के प्रति प्रबल प्रेम की भावना देख कर युधिष्ठिर बोले, “हिडिम्बे! मैं तुम्हें अपने भाई को सौंपता हूँ किन्तु यह केवल दिन में तुम्हारे साथ रहा करेगा और रात्रि को हम लोगों के साथ रहा करेगा।”
हिडिंबा इसके लिये तैयार हो गई और भीमसेन के साथ आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। एक वर्ष व्यतीत होने पर हिडिम्बा का पुत्र उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। वह अत्यन्त मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया।
हिडिम्बा ने अपने पुत्र को पाण्डवों के पास ले जा कर कहा, “यह आपके भाई की सन्तान है अत: यह आप लोगों की सेवा में रहेगा।” इतना कह कर हिडिम्बा वहां से चली गई। घटोत्कच श्रद्धा से पाण्डवों तथा माता कुन्ती के चरणों में प्रणाम कर के बोला, “अब मुझे मेरे योग्य सेवा बतायें।? उसकी बात सुन कर कुन्ती बोली, “तू मेरे वंश का सबसे बड़ा पौत्र है।
समय आने पर तुम्हारी सेवा अवश्य ली जायेगी।” इस पर घटोत्कच ने कहा, “आप लोग जब भी मुझे स्मरण करेंगे, मैं आप लोगों की सेवा में उपस्थित हो जाउँगा।” इतना कह कर घटोत्कच वर्तमान उत्तराखंड की ओर चला गया। इसी घटोत्कच ने महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से लड़ते हुए वीरगति पायी थी।

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